अष्टावक्र ऋषि का नाम उनकी शरीरक स्थिति के कारण है, जिससे उनके शरीर आठ विभागों में टूट गया था।
अद्भुत वाग्मिता
उन्होंने वेदांत में अपने गहरे ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हैं, और उनकी वाग्मिता और उपदेशों से श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उद्धवगीता के माध्यम से ज्ञान दिया।
कृष्ण और अष्टावक्र
भगवान श्रीकृष्ण के साथ अष्टावक्र ऋषि की एक रोचक मुलाकात हुई थी, जिसमें वे गहरे ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं।
उपदेश और उद्धवगीता
अष्टावक्र ऋषि ने राजा जनक को उपदेश दिया और उनके मार्गदर्शन में जनक ने आत्मज्ञान प्राप्त किया।
वैदिक ज्ञान के प्रचारक
अष्टावक्र ऋषि ने वैदिक ज्ञान का प्रचार किया और उनके शिष्य जनक के माध्यम से यह ज्ञान सामान्य लोगों तक पहुँचाया।
अन्यथा जीवन दृष्टि
अष्टावक्र ऋषि की दृष्टि जीवन को अन्यथा देखने में थी। उन्होंने जीवन की वास्तविकता को अद्वितीयता के साथ देखा और यह उनके उपदेशों में दिखता है।
भक्ति और ज्ञान का मेल
अष्टावक्र ऋषि ने भक्ति और ज्ञान को एकत्रित करने की महत्वपूर्णता को समझाया। उनके उपदेशों में आत्मा की पहचान और ईश्वर के प्रति भक्ति का महत्व है।
आत्मा का ज्ञान
अष्टावक्र ऋषि का मुख्य सन्देश आत्मा के अद्वितीयता के बारे में है। उनके अनुसार, आत्मा ब्रह्म का अभिन्न हिस्सा है और यह ज्ञान प्राप्त करने से मुक्ति प्राप्त होती है।